इस पृष्ठ पर आपको जीवन के सबसे महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे। जैसे, "पृथ्वी पर मेरा उद्देश्य क्या है?" "मुझे ऐसा क्यों लगता है कि दूसरों में जो शांति है, वह मुझमें क्यों नहीं?" या, "क्या यही सब कुछ है?"। यह पृष्ठ आपको इन प्रश्नों के उत्तर के साथ साथ अधिक जानकारी देगा। आप इसे महसूस नहीं कर सकते हैं, लेकिन आप अपने निर्माता परमेश्वर से अलग हो गए हैं । वास्तव में, आप अपने स्वभाव से अलग हो गए हैं। आपके लिए हमारा संदेश एक आशा बनकर आएगा क्योंकि परमेश्वर आपसे प्यार करता है और उनकी इच्छा है कि आप उनके साथ सामंजस्य बिठाएं और वह आपको अपना रास्ता प्रदान करता रहेगा। परमेश्वर से मिला समाधान आपको यह सुनिश्चित देगा कि आपका अलगाव अनन्त नहीं हैं।
क्या आप :
यह "दुनिया", मेरे और आप {{ personName }} जैसे लोगों के लिए परमेश्वर का प्रेम है, जिसमें परमेश्वर ने आपको समाधान प्रदान किया है ताकि आप उनके प्यार और शांति का अनुभव कर सकें जो आपके लिए उनके सामंजस्य के साथ आता है। परमेश्वरचाहता है कि जीवन के कठिन समय में भी आपका जीवन दूसरों के साथ और शांति और उनके साथ आनंद से भरा हो।
बाइबल से उद्धरण: यूहन्ना 3:16
यहाँ और अभी आपके जीवन में बहुतायत हो यह परमेश्वर का उद्देश्य है। फिर भी, ऐसा क्यों है कि अधिकांश लोग इस बहुतायत जीवन का अनुभव नहीं करते हैं? यूहन्ना 10:10
पाप ने आपको परमेश्वर से अलग कर दिया है। यहोवा का हाथ ऐसा छोटा नहीं हो गया कि उद्धार न कर सके, न वह ऐसा बहिरा हो गया है कि सुन न सके; परन्तु तुम्हारे अधर्म के कामों ने तुम को तुम्हारे परमेश्वर से अलग कर दिया है, और तुम्हारे पापों के कारण उसका मुख तुम से ऐसा छिपा है कि वह नहीं सुनता।यशायाह 59:1-2 इससे वह विभाजन पैदा हो गया है जो आपके और परमेश्वर के बीच है। {{ personName }}, आप आदम के पाप के माध्यम से पैदा हुए थे और आपने भी पाप करने को चुना है। अब आपके और परमेश्वर के बीच यह विभाजन उत्पन्न हुआ है
परमेश्वर ने अपनी छवि में लोगों को बनाया कि हम अपने परमेश्वर के साथ संगति का आनंद लें और उसे महिमा लाएँ, ताकि हम परमेश्वर के साथ एक मित्र बन सकें। परमेश्वर ने हमारे लिए एक खूबसूरत दुनिया का निर्माण किया ताकि हम उसका आनंद ले सके। उन्होंने हमें अद्भुत और पूर्ण जीवन जीने का अवसर दिया।
{{ personName }}, परमेश्वर ने अपनी छवि में रोबोट नहीं बल्कि जीवित प्राणी बनाए, जो एक स्वतंत्र इच्छाधारी नागरिक हो, जो प्यार करने और परमेश्वर की आज्ञा मानने और परमेश्वर से मिलनेवाली सभी सुख साधन का आनंद ले सके। इस मुक्ती में संभावना है कि हम परमेश्वर की आज्ञा न माने और उससे प्यार न करने को चुने । आखिरकार, एक वास्तविक दोस्ती और सच्चा प्यार होने के लिए, हमें चुनाव करने की जरूरत है। दोस्ती और प्यार का आधार रोबोट की तरह मजबूर नहीं किया जा सकता है, परंतु हमें चुनने की आज़ादी है।
हालाँकि, पहले सृजित व्यक्ति ने अपना रास्ता चुना और फिर उसकी अवज्ञा को पाप कहा जाता है। पाप का मतलब है निशान या लक्ष्य से भटकना , क्योंकि परमेश्वर ने हमारे लिए बहुत बेहतर इरादा रखे है। पाप के परिणाम केवल पहले पुरुष आदम और पहली महिला हव्वा के लिए नहीं थे, बल्कि सभी लोगों के लिए जिसमें पाप एक प्रवृति है जो सभी मानवता में दिखाई देती है।
बाइबल कहती है:
"इसलिये जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, क्योंकि सब ने पाप किया।" रोमियों 5:12
और कई अन्य तरीकों से, इस अंतर को पाटने का कोई तरीका नहीं है क्योंकि परमेश्वर पवित्र हैं, और हम नहीं हैं। हम कुछ भी करें, फिर भी हम अपने पापों को हटा नहीं सकते और लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकते हैं।
बाइबल कहती है: "इसलिये कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं"। रोमियों 3:23
क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है। रोमियों 6:23
परमेश्वर जानता था कि उसे ही इस पाप के समाधान को प्रदान करना है जो हमें उससे अलग किया है। इस समाधान का अर्थ था कि परमेश्वर एक मनुष्य के रूप में हमारे पास आए, परमेश्वर के पुत्र, यीशु मसीह के माध्यम से। यीशु वह जो यह कर सके जो कोई और नहीं कर सकता था। वह परमेश्वर के लिए आवश्यक पूर्ण पाप रहित जीवन जिया और इच्छानुसार हमारे स्थान लिया। हमारे पापो का खुद सजा लेकर अपने जीवन का आदान-प्रदान किया।
जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था, एक दूसरे के साथ अपने संबंधों में, तुम्हारा भी वैसा ही स्वभाव हो:
जिसने परमेश्वर के स्वरूप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा। वरन् अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया! और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपने आप को दीन किया, और यहाँ तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु, हाँ, क्रूस की मृत्यु भी सह ली। फिलिप्पियों 2: 5-8
बाइबल कहती है:
परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा। रोमियों 5: 8
वास्तव में, यीशु ने इसे इस तरह से कहा: यीशु ने उससे कहा, “मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता।" यूहन्ना 14: 6
अंत में परमेश्वर स्वयं समाधान लेकर आए हैं। परमेश्वर मनुष्य बन गया और उस व्यक्ति, यीशु मसीह के माध्यम से, परमेश्वर और हमारे बीच की खाई को मिटा दिया। इसी कारण वह इस धरती पर आया; वह हमारे स्थान पर हमारे पापों की सजा लेकर क्रूस पर एक क्रूर मौत मरा। ऐसा करने में, यीशु ने हमे परमेश्वर से जोड़ दिया।
बाइबल कहती है:
परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा। रोमियों 5: 8
और उससे थोड़ा पहले:
यीशु ने उससे कहा, “मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता।" यूहन्ना 14: 6
{{ personName }}, जैसा कि आप अब तक देख सकते हैं, इस दुनिया में हर कोई पाप के कारण परमेश्वर से अलग हो गया था। {{ personName }}, आप, और अन्य सभी, दोषी पाए गए हैं और निर्णय के अधीन हैं जो अनंत काल तक चलेगा। परमेश्वर आपकी या किसी और के लिए यह नहीं चाहता । वह आपके साथ धीरज कर रहा है ताकि आप या कोई और नाश न हो, परंतु हर कोई पश्चाताप करे और अनन्त जीवन पाए। यदि आप कुछ नहीं करते हैं, तो आप अलग ही रहेंगे। जीवन का चयन करने के लिए परमेश्वर अभी आपके पास पहुंच रहे हैं; वह आपको सही मायने में उसका संतान बनने और वह आपका पिता बनने का मौका दे रहा है। आप किसी धार्मिक समारोह जैसे कि बपतिस्मा या पुष्टि या धार्मिक कानूनों का पालन करने या अच्छे कर्म करने से परमेश्वर से मेल नहीं रख सकते या आपके पापों का क्षमा पा सकते हैं। यीशु को चुनने का अर्थ है परमेश्वर को चुनना। यह विश्वास है और परमेश्वर की कृपा के कारण है। इससे अधिक महत्वपूर्ण विकल्प कोई और नहीं है जो आप कर सकते है। आप परमेश्वर का अनुगामी बनते है जब आप उस पर और उसके संदेश पर विश्वास करते हैं।
बाइबल कहती है:
जितनों ने उसे [यीशु को] ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। यूहन्ना 1:12
बाइबल बताती है कि यह उनके संदेश और इस सत्य पर विश्वास करना है कि वह कौन है और उसने अपने जीवन, मृत्यु और पुनरुत्थान से क्या निपुण किया।
बाइबल कहती है:
यदि तू अपने मुँह से "यीशु को प्रभु " जानकर अंगीकार करे, और अपने मन से विश्वास करे कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा। 10क्योंकि धार्मिकता के लिये मन से विश्वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुँह से अंगीकार किया जाता है। रोमियों 10:9-10
जब आप ऐसा करते हैं तो आपको पापों की क्षमा मिलती है। अब आप विश्वासके माध्यम से उचित माने जायेंगे और यीशु मसीह के माध्यम से परमेश्वर के साथ शांति पा सकते है। इसे ही 'विश्वास रखना' कहते है। इसका यही अर्थ है कि आपको 'यीशु पर भरोसा' है। ’{{ personName }}, आपको व्यक्तिगत रूप से उसके संदेश को और यीशु को स्वीकार करना है। तब यीशु आपके जीवन का परमेश्वर बनेंगे।
बाइबल कहती है:
जितनों ने उसे [यीशु को] ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। (यूहन्ना 1:12)
1. पहचानते है कि आप पापी हैं और आप परमेश्वर से अलग हो गए हैं?
2. विश्वास रखते है कि परमेश्वर के पास आने के लिए आपको यीशु मसीह पर विश्वास करने की आवश्यकता है?
3. क्या आप यीशु से अपने पापों को क्षमा करने के लिए कहेंगे क्योंकि उसने आपकी सजा ली थी?
4. मानते हैं कि वह प्रभु है और मृतकों में से जी उठा है?
{{ personName }}, यदि आपने इन प्रश्नों के लिए हाँ कहा है, तो प्रार्थना में परमेश्वर को बताएं, क्योंकि वह जानता है कि आपके ह्रदय में क्या है।
अब, आप परमेश्वर को धन्यवाद दे सकते हैं कि यीशु के लहू और बलिदान से, आपके पाप धुल गए हैं।
5. अब परमेश्वर को यह बताने का समय आ गया है कि आप अपने जीवन के बाकी समय उनका अनुसरण करना चाहते हैं क्योंकि बाइबल कहता है कि अब आप एक 'नई सृष्टि' हैं। 2 कुरिन्थियों 5:16-17